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The Train... beings death 18

जब नीरज ने इंस्पेक्टर कदंब को कॉल किया तब इंस्पेक्टर कदंब डॉ शीतल के साथ थे। डॉ शीतल की गोद में वह अजीब जीव का बच्चा था। डॉ शीतल का पूरा ध्यान उस बच्चे को संभालने में लगा हुआ था। यहां तक कि आसपास क्या हो रहा था उसके बारे में भी डॉक्टर शीतल को कोई होश नहीं था।

 लैब के सारे असिस्टेंट्स डॉ शीतल को घूर रहे थे। कदंब भी डॉक्टर शीतल को देखते हुए किसी सोच में था। डॉ शीतल के चेहरे पर एक अलग सी मुस्कान थी जैसे उन्होंने कोई बहुत बड़ा पज़ल सॉल्व कर दिया हो। कुछ देर तक इंस्पेक्टर कदंब शीतल को देखते रहे और जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो वह डॉक्टर शीतल से कुछ सवाल करने के लिए उठे और डॉ शीतल के सामने जाकर खड़े हो गए। 


शीतल ने इंस्पेक्टर कदंब को बिल्कुल अनदेखा कर दिया। इंस्पेक्टर कदंब को यह बात अच्छी नहीं लगी। जैसे ही उन्होंने कुछ सवाल करना चाहा इंस्पेक्टर कदंब का फोन बजने लगा। उन्होंने अपना फोन चेक किया तो नीरज का नाम फ्लैश हो रहा था। इंस्पेक्टर कदंब नीरज का फोन देख कर चौक गए थे। उन्हें लगा जरूर कमल नारायण जी के साथ कोई अनहोनी हो गई होगी तभी इस टाइम नीरज कॉल कर रहा था। फोन लगातार बजे ही जा रहा था पर शीतल पर किसी भी बात का कोई असर ही नहीं हो रहा था। 


 इंस्पेक्टर कदंब तुरंत डॉक्टर शीतल के सामने से निकलते हुए बाहर चले गए। बाहर जाकर उन्होंने फोन उठाया तो नीरज ने घबराते हुए कहा, "सर..!! सर..! मुझे लगता है यहां पर कुछ ना कुछ बड़ा हुआ था। ट्रेन का मामला इसी से जुड़ा हुआ है।"


 इंस्पेक्टर कदंब को नीरज की बातें समझ में नहीं आ रही थी। उन्होंने तेज आवाज में डांटते हुए कहा, "नीरज! तुम क्या बोल रहे हो? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा.. साफ-साफ बताओ बात क्या हुई है?"


 नीरज ने अपने आप को शांत किया और बोला, "सर.. मैं कमल नारायण जी के कमरे में जा ही रहा था तभी मुझे उनकी आवाज आई। वह किसी से कह रहे थे कि यह सब कुछ मेरे ही कारण हुआ है। इस सब के पीछे मेरा ही हाथ है। अगर उस दिन मैं वह सब कुछ नहीं करता तो ऐसा नहीं हो सकता था।"


 यह बात सुनकर इंस्पेक्टर कदंब कंफ्यूज से दिखाई दे रहे थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि नीरज की बात का क्या जवाब दें। जब कुछ देर तक इंस्पेक्टर कदंब ने एक शब्द भी नहीं कहा तो फोन से नीरज की आवाज आई, "सर..! सर.. क्या कह रहे हैं आप? मैं क्या करूं अंदर जाकर देखूँ या फिर??"


 नीरज की बात को बीच में ही रोकते हुए इंस्पेक्टर कदंब ने कहा, "नीरज एक काम करो! सबसे पहले जाकर डॉक्टर से बात करो की कमल नारायण जी की कंडीशन कैसी है? क्या इस टाइम हम उनसे पूछताछ कर सकते हैं? साथ ही साथ यह भी देखो की कमल नारायण जी ने यह सारी बातें किसे कही थी? उस टाइम उनके रूम में उनके परिवार का ही कोई आदमी था या फिर वह फोन पर किसी से बात कर रहे थे? और हां ध्यान रखना कि डॉक्टर के अलावा फिलहाल और कोई उनके कमरे में कमल नारायण जी से मिलने ना जा पाए! मैं जल्दी से जल्दी वहां पहुंचने की कोशिश करता हूं।"


 "यस सर..!!" नीरज ने कहा और फोन डिस्कनेक्ट हो गया। इंस्पेक्टर कदंब कभी अपने हाथ में पकड़े फोन को तो कभी उस कमरे के बंद दरवाजे को देख रहे थे.. जिसमें डॉ शीतल की गोद में वह विचित्र से जीव का बच्चा था। इस समय इंस्पेक्टर कदंब भी थोड़ा कंफ्यूज और हारा हुआ महसूस कर रहे थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि पहले डॉ शीतल से इस सब के बारे में बात करें या फिर पहले हॉस्पिटल जाकर कमल नारायण जी से बात करें।


 कुछ सोचते हुए इंस्पेक्टर कदंब तेजी से फॉरेंसिक लैब से बाहर निकल गए और जल्दी ही हॉस्पिटल पहुंचे.. जहां पर कमल नारायण एडमिट थे। नीरज कमल नारायण जी के रूम के बाहर ही मिल गया था। वहां पहुंचते ही इंस्पेक्टर कदंब ने पूछा, "क्या हुआ नीरज? मैंने तुम्हें जो भी बोला था वह किया?"


 नीरज ने हां में अपनी गर्दन हिलाई और कमल नारायण के कमरे की तरफ जाते हुए बोलना शुरु कर दिया, "डॉक्टर ने कहा कि कमल नारायण जी की हालत थोड़ी गंभीर है। उन्हें ज्यादा टेंशन देना इस वक्त ठीक नहीं होगा। पर अगर हम चाहे तो पूछताछ कर सकते हैं पर उन्हें बहुत ज्यादा स्ट्रेस ना हो इस बात का हमें खास ख्याल रखना होगा। उनकी फैमिली वाले यहीं बाहर बैठे थे। डॉक्टर ने किसी भी फैमिली वाले को कमल नारायण जी से मिलने की परमिशन नहीं दी और फोन का तो सवाल ही नहीं उठता। पेशेंट के पास इस समय फोन नहीं दिया जा सकता इसीलिए जो भी कुछ मैंने सुना वह कमल नारायण जी ना तो अपने फैमिली वाले को बता रहे थे और ना ही किसी को फोन पर कह रहे थे।"


 "इस बात का क्या मतलब हुआ नीरज?" इंस्पेक्टर कदंब ने नीरज के साथ चलते हुए कंफ्यूज होकर पूछा। 


तब नीरज ने कहा, "डॉक्टर कह रहे थे कि जब वह कमल नारायण जी का ट्रीटमेंट कर रहे थे तब कमल नारायण जी बेहोशी में भी बार-बार एक ही बात दोहरा रहे थे। यह सब कुछ मेरे ही कारण हुआ है! मेरे ही वजह से यह सब कुछ हो रहा है! मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था!!"


 "मतलब! मैं समझा नहीं? हो क्या रहा है यह? पहले वह ट्रेन, फिर चिंकी, उसके बाद वह धुंऐ वाला जानवर, फिर वह लड़की, उसके बाद जानवर का बच्चा और अब कमल नारायण जी!!  यार मैं 1 दिन पागल हो जाऊंगा इन सब के चक्कर में!!" इंस्पेक्टर कदंब ने अपना सर पकड़ते हुए कहा।

 नीरज ने पास ही रखी कुर्सियों पर इंस्पेक्टर कदंब को बिठाया और जल्दी से पानी लेकर आया। इंस्पेक्टर कदंब को पीने के लिए पानी दिया और आगे बोला, "सर हमें इस सब के लिए कुछ तो करना ही होगा। अभी सब कुछ बिखरा बिखरा है। एक बार किसी तरह हम पहली कड़ी तक पहुंच गए तो आगे की सारी कड़ियां अपने आप हाथ में आती ही चली जाएंगी। बस हमें शांति से पहली कड़ी ढूंढनी होगी।"


 इंस्पेक्टर कदंब ने हां में अपनी गर्दन हिलाई और फिर कहा, "हां चलो! सबसे पहले कमल नारायण जी से ही बात करते हैं। फिर देखते हैं क्या होता है?"


 इतना कहकर इंस्पेक्टर कदंब उठ खड़े हुए और तेजी से नीरज के साथ कमल नारायण जी के रूम की तरफ चल दिए। जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोलकर अंदर एंटर किया उन्होंने देखा कमल नारायण जी मशीनों से घिरे हुए बेड पर लेटे हुए थे.. उनकी आंखें बंद थी। बहुत सारी लाइफ सपोर्टिंग मशीन्स वहां पर रखी हुई थी। एक बहुत ही आलीशान फाइव स्टार होटल जैसा रूम था। हॉस्पिटल रूम इतना लग्जूरियस हो सकता था.. इसका अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल ही था।


 इंस्पेक्टर कदंब और नीरज ने उस रूम में जाकर धीरे से दरवाजा बंद किया। उस हल्की सी आवाज से ही कमल नारायण जी की आंख खुल गई। उन्होंने एक नजर इंस्पेक्टर कदंब पर डाली और फिर नीरज को देखा और एक लंबी सांस लेने के बाद उठने की कोशिश करने लगे।


 इंस्पेक्टर कदंब ने आगे बढ़कर कमल नारायण जी को संभाला और उन्हें वापस लिटाते हुए कहा, "आप लेटे रहिए। मुझे बस आपसे कुछ बातें पूछनी थी अगर आप बहुत ज्यादा परेशान ना हो तो.. क्या मैं आपसे कुछ सवाल पूछ सकता हूं?"


 कमल नारायण जी ने हां में अपनी गर्दन हिलाई और धीरे से अपने मुंह पर लगा ऑक्सीजन मास्क हटाते हुए कहा, "बिल्कुल पूछिये.. क्या पूछना चाह रहे थे?"


 कदंब ने मास्क वापस से ठीक से लगाते हुए कहा, "आप इसे लगे रहने दीजिए! ऐसे ही जवाब दे दीजिएगा!"


 कमल नारायण ने हां में अपनी गर्दन हिलाई और धीरे से कहा, "हां पूछिए.. क्या पूछना है?"


 इंस्पेक्टर कदंब ने पास पड़ी कुर्सी सरकाकर कमल नारायण के पास बैठते हुए पूछा, "कुछ देर पहले नीरज ने आपको कुछ कहते हुए सुना था। आप बार-बार बोल रहे थे कि यह जो भी कुछ हो रहा है.. आप ही की वजह से हो रहा है। अगर आप ऐसा ना करते तो आज ऐसा कुछ भी नहीं होता। इस बात का क्या मतलब हुआ?"


 इंस्पेक्टर कदंब की बात सुनते ही कमल नारायण थोड़ा सा परेशान दिखने लगे थे। उन्हें परेशान देखते हुए नीरज बोला, "कमल नारायण जी..! आप रिलैक्स रहिए! आपको टेंशन लेने की कोई जरूरत नहीं है। हम बस कुछ सवालों के जवाब जानना चाहते हैं। आपको तो पता ही है आप की पोती के साथ क्या हुआ है? वह मनहूस ट्रेन और भी पता नहीं किस-किस के साथ क्या-क्या करें? अगर इस बारे में आप कुछ भी जानते हैं तो प्लीज आप हमें बता दीजिए!"


 कमल नारायण के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव दिखाई दे रहे थे। उन्होंने एक लंबी सांस ली और बोले, "इंस्पेक्टर!! जो भी आप लोगों ने सुना वह बिल्कुल ठीक था। दरअसल हुआ यूं था कि आज से 60- 65 साल पहले की बात थी। उस वक्त हम लोग गुरुकुल में पढ़ा करते थे। मेरे साथ और भी लड़के थे। हम सभी ज्योतिष शास्त्र के साथ साथ वास्तु शास्त्र, वैदिक ज्ञान, सामुद्रिक शास्त्र के साथ-साथ रत्न शास्त्र और रस विज्ञान के बारे में पढ़ते थे। हम 4 लोगों का एक ग्रुप था इतना कहते हुए कमल नारायण कहीं खो गए थे।"


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 60 साल पहले भवानीपुर अभी जहां बसा हुआ था वहां नहीं था। यहां पर केवल घना जंगल हुआ करता था। भवानीपुर उन जंगलों के बाहर बसा हुआ एक बड़ा सा शहर था। जब अंग्रेज वापस गए थे तभी सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से पूरे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा रहा था। उस समय छोटी मोटी बहुत सी रियासतें अपने हिसाब से विलय हो रही थी। उसी टाइम भवानीपुर भी अपने राजा की इच्छा से भारतवर्ष में विलय हो गया।


बहुत सालों पहले भवानीपुर के तत्कालीन महाराज ने एक गुरुकुल की स्थापना की थी.. ताकि आने वाली पीढ़ियां अपने समृद्ध इतिहास को जान और समझ सकें.. साथ ही अंग्रेजी राज में अपनी सभ्यता और संस्कृति को बचाया जा सके और तो और अपनी आने वाली पीढ़ियों को गुलामी से छुटकारा दिला सकें।

 गुरुकुल में राज परिवार के बच्चों के साथ साथ दरबारियों, सेनापति, राजपुरोहित, शहर के प्रतिष्ठित व्यापारियों के बच्चों के साथ साथ अगर कोई सामान्य नागरिक भी अपने बच्चों को  पढ़ाना चाहता था तो वह गुरुकुल में अपने बच्चों को भेज सकता था। काफी सालों से यह परंपरा चली आ रही थी।



 अंग्रेजों ने कई बार इस गुरुकुल को बंद कराने की कोशिश की थी पर फिर भी चोरी छुपे गुरुकुल चल रहा था। अंग्रेजों के कारण सभी को प्रवेश नहीं मिलता था पर कुछ ही लोगों को जो विश्वास पात्र होते थे उन्हीं के बच्चों को प्रवेश दिया जाता था। ताकि कोई भी गोपनीय जानकारी गुरुकुल के बाहर नहीं जाए। अंग्रेजों का मानना था कि गुरुकुल में क्रांतिकारी गतिविधियां होती थी इसीलिए वह लोग गुरुकुल को बंद करवाना चाहते थे। यह कुछ हद तक ठीक भी था। काफी सारे क्रांतिकारियों को उस गुरुकुल में शरण और सहायता दी जाती थी।



 उसी समय में कमल नारायण ने काफी कम उम्र में प्रवेश लिया था। कमल नारायण शास्त्री के पिता जी महाराज के विशेष सलाहकार थे। कमल नारायण के साथ ही तीन और बच्चों ने प्रवेश लिया था। जिनमें एक था  वैदिक..! जिसके पिता भवानीपुर के महाराज के विशेष अंगरक्षक थे। दूसरा था आत्मानंद..! जिसके पिता आश्रम में ही एक आचार्य थे और तीसरा था गौतम..!! गौतम के बारे में किसी को भी कोई जानकारी नहीं थी। वह 1 दिन गुरुकुल के ही एक आचार्य को जंगल में जब वह औषधियां ढूंढने गए थे.. तब बहुत ही ज्यादा घायल अवस्था में मिला था। तब से उन्हीं आचार्य ने गौतम का पालन पोषण अपनी सन्तान की तरह ही किया था। उस समय गौतम बहुत छोटा था पर जब वह कुछ बड़ा हुआ.. तब आचार्य ने गौतम का भी दाखिला गुरुकुल में करवा दिया था।


 धीरे धीरे उनकी पढ़ाई लिखाई चलती रही। थोड़ा समय बीतने के बाद कमल नारायण, वैदिक, आत्मानंद और गौतम चारों बहुत ही अच्छे दोस्त बन गए थे। पढ़ाई लिखाई में तो चारों आगे थे ही जो भी वह लोग देखते थे उसे तुरंत ही याद कर लेते थे। पढ़ाई लिखाई के साथ साथ शरारत में भी चारों सबसे आगे थे। धीरे धीरे वह हर विद्या में निपुण होते जा रहे थे।


 कमल नारायण को पढ़ना ज्यादा पसंद था। वहीं गौतम शरारत करने में अव्वल था। आत्मानंद और वैदिक को बस शैतानियों में गौतम का साथ देना ज्यादा पसंद था।
हर एक बात जो गौतम को पता चलती थी.. उसे करने और सीखने में गौतम जी जान लगा देता था। चाहे वह काम करने के लिए फिर सभी मना कर दे या फिर कोई और मुसीबत आ जाए। अगर गौतम ने एक बार ठान ली तो कोई भी गौतम को उस काम को करने से नहीं रोक सकता था। इन सभी शरारतों में अपने बाकी दोस्तों की मदद कैसे लेनी चाहिए और सभी को कैसे मनाना था ये गौतम अच्छे से जनता था।


 कमल नारायण हर समय गुरुकुल के पुस्तकालय में ही मिलता था। उस दिन भी कमल नारायण पुस्तकालय में ही बैठा हुआ था। तभी अचानक कमल नारायण के मन में रस शास्त्र ( पारे के विज्ञान को एक अलग शास्त्र के रूप में आयुर्वेद में बताता गया है इसे ही रस शास्त्र कहते हैं। ) के बारे में और भी ज्यादा जानने की जिज्ञासा हुई। रस शास्त्र की जितने भी पुस्तकें उस समय पुस्तकालय में उपलब्ध थी.. सभी उसने ढूंढ कर निकाल ली थी। 


कमल नारायण को पता भी नहीं चला और एक गुप्त तंत्र शास्त्र की पुस्तक उनमें मिलकर बाहर आ गई थी। वह पुस्तक कहाँ और कैसे मिली इस बारे में कमल नारायण को भी कुछ पता नहीं था? कमल नारायण सारी पुस्तकें लेकर अपने कमरे में आ गया था। एक-एक करके वह सभी पुस्तकों को पढ़ रहा था।


 शाम का समय हो गया था। आत्मानंद, वैदिक और गौतम तीनों ही कमल नारायण की खेलने के लिए प्रतीक्षा कर रहे थे। कमल नारायण तो सब कुछ भूल कर किताबों में ही व्यस्त था। जब बहुत देर तक कमल नारायण वहां नहीं आया तो उसके तीनों दोस्त कमरे में आए और कमल नारायण को खेलने ना आने के लिए उलाहना देने लगे।


 गौतम ने चिढ़ते हुए कहा, "हम कब से तुम्हारा इंतजार कर रहे थे। तुम्हें पता है ना हम तुम्हारे बिना खेलते नहीं है। फिर भी तुम अब तक नहीं आए।"


 कमल नारायण ने बिना उन लोगों की तरफ देखे हुए जवाब दिया, "हमें आज रस शास्त्र की सारी पुस्तकें पढ़नी है।"


 "तो तुम्हें कौन सा गुरुदेव ने यह कार्य दिया है जो तुम्हें आज ही सारी पुस्तकें पढ़नी है।" आत्मानंद ने कहा।


 "नहीं मुझे गुरुदेव ने नहीं कहा। फिर भी मुझे यह सारी पुस्तकें आज पढ़नी है। अगर तुम चाहो तो पढ़ सकते हो और अगर तुम्हें नहीं पढ़ना तो मुझे भी परेशान मत करो।"  कमल नारायण ने चिढ़ते हुए कहा।


  गौतम उन किताबों को उलट-पुलट कर देखने लगा.. उसी समय गौतम के हाथ वो तंत्र शास्त्र की किताब लग गई। गौतम ने उसे खोल कर देखा तो उसमें कुछ गोपनीय विधियां लिखी हुई थी। उस समय गौतम ने बिना कुछ कहे चुपचाप वो किताब अपने कपड़ों में छुपा ली और अपने कमरे की तरफ वापस लौट गया।


 सारे बच्चे गुरुकुल में ही रहते थे। गौतम केवल उन आचार्य के साथ रहता था जिन्हें वह जंगल में मिला था। गौतम ने चुपचाप वह किताब ले जाकर अपने कमरे में छिपा दी ताकि और किसी को पता ना चले। गौतम उस किताब को रखकर भूल गया था।


 कुछ दिनों बाद जब गुरुकुल में साफ सफाई का काम चल रहा था.. तभी सभी को पता चला की पुस्तकालय से कुछ किताबें गायब थी। उन किताबों में एक किताब ऐसी भी थी जो बहुत ही ज्यादा कीमती थी। पूरे गुरुकुल में इस बात को लेकर काफी अफरा तफरी मच गई थी। सभी बहुत परेशान थे कि वह किताब अचानक कहां गई?


 जो भी बच्चे नियमित रूप से पुस्तकालय जाते थे.. या जो कभी कभी भी जाते थे.. उन सभी से पूछताछ की जा रही थी। यहां तक कि उनके कमरों और उनके सामान की भी जांच पड़ताल की जा रही थी। जिससे अगर किसी बच्चे ने उस किताब को छुपाया भी हो तो मिल जाए। कमल नारायण, आत्मानंद और वैदिक तीनों के कमरों की भी तलाशी ली गई थी। उनके साथ साथ पूरे गुरुकुल को छान मारा गया था लेकिन वह किताब कहीं नहीं मिली थी।


 अब सब बच्चों में भी बहुत ज्यादा कौतूहल था.. उस किताब को लेकर। गौतम भी किताब को कहीं छुपा कर भूल गया था.. पर जब उसे पता चला कि कोई विशेष पुस्तक पुस्तकालय से खो गई थी और सभी लोग उसे ढूंढने में लगे थे.. तब गौतम को याद आया कि एक पुस्तक उसने भी कमल नारायण के पास से ली थी और अब तक वो पुस्तक गौतम के ही पास थी। गौतम ने उस पुस्तक को ढूंढना शुरू किया। वह किताब जहां पर गौतम ने रखी थी वही मिल गई।


 गौतम को भी इस बात की बहुत ज्यादा उत्सुकता थी कि ऐसा आखिर उस किताब में ऐसा क्या था?? जिसके लिए सभी बहुत ही ज्यादा परेशान थे। जैसे-जैसे गौतम उस किताब को पढ़ता जा रहा था.. गौतम के सारे वहम साफ होते जा रहे थे। अब गौतम को समझ में आ गया था कि ऐसा उस पुस्तक में क्या था.. जिसकी वजह से सभी लोग उसी पुस्तक को इतनी व्याकुलता से ढूंढ रहे थे।


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2 Comments

Punam verma

27-Mar-2022 05:12 PM

Nice story

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Lotus🙂

29-Jan-2022 05:06 PM

Very very intresting story likhi hai, eagerly waiting for next

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